आरती संग्रह

आरती : 1 


कूँ कूँ केरा चरण पधारो गुरु जम्भ देव,साधु जो भक्त थारी आरती करे |
 महात्मा पुरुष थारी ध्यान धरे|
 जभगुरु ध्यावे सो सर्व सिद्धि पावे,संत करोड़ जन्म किया पाप झरे।
 हिरदय जो हवेली माँहि रहो प्रःभु रात दिन मोतियन की प्रभु माला जो गले।
 कर में कमण्डल शीश पर टोपी , नायना मानो दोय मशाल सी जरे ।। 
 कूँ कूँ केरा चरण.......... 
 सोनेरो सिंहासन प्रभु रेशम केरी गदिया,फूला हॉदी सेज प्रभु वैस्या ही सरे। 
प्रेम रा प्याला थाने पावे थारा साधु जन ,मुकुट छत्र सिर चवर डुले । 
 कूँ कूँ केरा चरण .... 
 शंख जो शहनाई बाजे झींझा करे झननन, भेरी जो नगाड़ा बाजे नोपता घूरे । 
 कंचन केरो थाल कपूर केरी बतियाँ , अगर केरो धूप रवि इंद्र जयूँ जरे ।
 कूँ कूँ केरा चरण ..... 
 मजीरा टँकोरा झालर ,घंटा करे घन्नन्न ,शब्द सुणा सो सारा पातक जरै।
 शेष् से सेवक थारे,शिव से भंडारी ब्रह्मा से खजांची सो जगत घरे। 
 कूँ कूँ केरा चरण .... 
 आरती में आवे आय शीश नवाये ,निश जागरण सुणे जमराज जो डरे। साहबराम सुनावे,गावे,नव निधि पावे,सीधो मुक्त सिधावे काल कर्म जो टरे।
 कूँ कूँ केरा चरण ....



आरती : 2


आरती कीजै गुरु जम्भ जती की, भगत उधारण प्राण पति की [टेक ।
पहली आरती लोहट घर आये, बिन बादल प्रभु इमिया झुराये।॥।
दूसरी आरती पींपासर आये, दूदा जी को प्रभु परचो दिखाये।2।
तीसरी आरती सम्भराथल आये, पूल्है जी को प्रभु स्वर्ग दिखाये।3।
चौथी आरती अनू निवाये, भूंच लोक प्रभु पात कहाये।4।
पाँचवी आरती ऊदो जन गाबै, वास वैकुण्ठ अमर पद पावबै।5।



आरती : 3


आरती हो जी सम्भराथल देव, विष्णु हर को आरती जय।
थारी करे हो हांसल दे माय, थारी करे हो भक्त लिवलाय टेक |
सुर तेतीसां सेवक जांके, इन्द्रादिक सब देव।
ज्योति स्वरूपी आप निरंजन, कोई एक जानत भेव।॥।
पूर्ण सिद्ध जम्भगुरु स्वामी, अबतरे केवलि एक।
अन्धकार के नाशन कारण, हुए हुए आप अलेख।2।
सम्भराथल हरि आन विराजे, तिमिर भये सब दूर।
सांगा राणा और नरेशा, आये आये सकल हजूर।3।
सम्भराथल की अद्भुत शोभा, वरणी न जात अपार।
सन्त मण्डली निकट विराजे, निर्गुण शब्द उच्चार |4।
वर्ष इकक्‍्यावन देव दया कर, कीन्‍न्हों पर उपकार।
ज्ञान ध्यान के शब्द सुणाये, तारण भव जल पार ।5।
पंथ जाम्भाणों सत कर जाणों, यह खांडे की धार।
सत प्रीत सू करो कीर्तन, इच्छा फल दातार।6।
आन पंथ को चित से टारो, जम्भेश्वर उर ध्यान।
होम जाप शुद्ध भाव से कीजै, पावो पद निर्वाण।7।
भक्त उद्धारण काज संवारण, श्री जम्भ गुरु निज नाम।
विघ्न निवारण शरण तुम्हारी, मंगल के सुख धाम ।8।
लोहट नन्दन दुष्ट निकन्दन, श्री जम्भ गुरु अवतार।
ब्रह्मानन्द शरण सतगुरु की, आवागवण निवार |9।



आरती : 4


आरती कीजै गुरु जम्भ तुम्हारी, चरण शरण मोही राख मुरारी टेक ।
पहली आरती उन मुन कीजै, मन वच करम चरण चित दीजै ।१।
दूसरी आरती अनहद बाजा, श्रवण सुण्या प्रभु शब्द आवाजा।2।
तीसरी आरती कंठ सुर गाबै, नवधा भक्त प्रभु प्रेम रस पावै |3 |
चौथी आरती हृदय में पूजा, आतम देव प्रभु और नहीं दूजा।4।
पांचवी आरती प्रेम प्रकाशा, कहत ऊदो साधु चरण निवासा |5।



आरती - 5


आरती कीजै श्री जम्भगुरु देवा, पार नहीं पावै बाबो अलख अभेवा टेक |
पहली आरती परम गुरु आये, तेज पुज काया दरसाये।॥।
दूसरी आरती देव विराजै, अनंत कला सतगुरु छवि छाजै।2।
तीसरी आरती त्रिसूल ढ़ापै, खुध्या तृष्णा निंदरा नहीं व्यापै।3।
चौथी आरती चहुंदिश परसै, पेट पूठ नहीं सनमुख दरसे |4।
पांचवी आरती केवल भगवंता, शब्द सुण्या जोजन पर्यन्ता।
ऊदो दासजी आरती गावै, श्री जम्भगुरु जी को पार न पावै ।5।



आरती - 6


आरती कीजै श्री महा विष्णु देवा, सुरनर मुनि जन करै सब सेवा। टेक।
पहली आरती शेष पर लौटे, श्री महा लक्ष्मी चरण पलोटे।१।
दूसरी आरती खीर समुद्र ध्यावै, नाभि कमल ब्रह्मा उपजाये।2।
तीसरी आरती विराट अखंडा, जांके रोम कोट ब्रह्मण्डा।3।
चौथी आरती बैकुण्ठ बिलासी, काल अगूंठ सदा ही अविनाशी ।4।
पांचवीं आरती घट घट वासा, हरिगुण गाबै ऊदो दासा।5।








           ******* जम्भ चरित्र ध्वनि ********
आये म्हारे जम्भ गुरु जगदीश, सुरनर मुनि हरि नै नावें सीस टेक ।
गुरु आप सम्भराथल आये हो, म्हारे संतों के मन भाये हो टेक ।
लोहट घर अवतारा हो, एतो धन धन भाग हमारा हो।॥।
अलख निरंजन आये हो, एतो म्हारे संतों के मन भाये हो।2।
घट घट मांय विराजै हो, एतो सरस शब्द धुनि गाजै हो।3।
जांके चरण कोई ध्यावे हो, एतो चार पदार्थ पावे हो।4।
सम्भराथल आसण साजै हो, एतो झिगमिग जोत प्रकाशे हो ।5।
नंद घर गऊवें चारी हो, ऐतो नख पर गिरवर धारी हो।6।
विराट रूप अखंडा हो, जाके रोम कोट ब्रह्मण्डा हो |7।
इस धुन कूं कोई गाबे हो, एतो वास बैकुण्ठे पावे हो ।8।
जम्भगुरु जी की आशा हो, ऐतो जस गावे गंगादासा हो।9।